zindagi ek paheli

zindagi ek paheli

zindagi ek paheli

कहते हैं की किसी चीज के होने में,
और करने में कितना फर्ख होता हैं.
चाहें वो प्यार हो, शादी हो, बच्चें हों, वर्क हों.
एक बार जब मैं जुहू बीच पे गया,
एका-एक मुझें एक मूर्तिं दिखीं पानी में, मैंने सोचा :
यह मूरत मिटटी कि बनी हैं, और हमारा शरीर भी.
दोनों हि इन्सान के बनायें हैं,
एक होश में और एक मदहोशी में,
जो होश में बनाया वो मूरत हैं,
और जो मदहोशी में बना वह इंसान हैं,
जो होश में बनाया, वह निर्जीव हैं,
और जो मदहोशी में बना उसमें जीवन हैं.

कहने का मतलब यह हैं की, जो चीजे नैचुरली होती हैं,
उसमें जान होती हैं, रस होती हैं, प्रेम होती हैं.

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