जीवन और मृत्यु क्या हैं ?
जन्म और मृत्यु, शरीर की दो अवस्थाएँ है, बीच में जो हम अनुभव करते है, वह हैं जीवन।
चूँकि जीवन इतनी प्यारी होती है कि कोई भी प्राणी इसे खोना नहीं चाहती, या फिर यूँ कहे जीवन के लिए मोह हमें मृत्यु से भयभीत करता हैं, पर सत्य तो यह है कि जो भी प्राणी जन्मा है, उसकी मृत्यु तो होगी ही।
मृत्यु का भय, काल चक्र, पुनर्जन्म, मोक्ष, कई ऐसी बाते है, जिसके विषय में मनुष्य जानता तो नहीं है, पर अपना समस्त जीवन इन्हे जानने में गवां दे सकता हैं। कोई पर्वतो में चला जाता हैं धयान करने के लिए, कोई चर्च में नन या फादर बन जाता है, कोई समस्त जीवन ब्रह्मचारी रहता है।
यद्यपि, प्रयास तो सभी कर रहे है, पर कितनो को सच में उस ज्ञान की प्राप्ति होती हैं ?
शायद, कुछ ही गिने चुने ही लोग होंगे, जो इस सच्चाई से रुबरु हो पाते है।
तो जो भी लोग इस ज्ञान को जानने का प्रयास कर रहे हैं, उनके लिए मैं इक बिलकुल ही साधारण सा उदाहरण देना चाहूँगा,
उपर्युक्त चित्र में आप देख पा रहे है कि बालिका ने नदी के जल को अपने हाथो के कोशों में भर लिया है, और उसकी कोशो में से जल निरंतर नीचे नदी में गिरती जा रही हैं।
उसकी हाथो की कोशो में जो जल है, वह भी उसी नदी के जल का ही अंश है, जिससे उसे निकाली गयी है, पर जब तक यह कोशों में रहती है, उसका अपना एक अलग अस्तित्व है, और जैसे ही हाथो से नदी में गिरी वह बून्द भी नदी बन जाती है।
ठीक उसी प्रकार आत्मा हमारे शरीर में रहती हैं, हमारा शरीर इसे अपना एक अलग अस्तित्व देता है।
हर शरीर का अपना धर्म होता है – कैसे सोना, खाना, पीना, साँसे लेना, सम्भोग इत्यादि।
अर्थात आत्मा जिस जीव का शरीर धारण करेगा, उसका अनुभव उसके मुताबिक ही होगी।
उसकी इन्द्रिया और शरीर के विभिन्न दायरे से अपने जीवन की विभिन्न सत्यो से रुबरु होते है।
जिस तरह, गर आपको किसी बंद कमरे में बैठा दिया जाये तो आप उस कमरे के भीतर की चीज़ों को तो देख पाओगे पर कमरे के बहार की चीज़ों को नहीं देख पाओगे। ठीक वैसे ही हमारा, शरीर के भीतर रहकर शरीर के बाहर में चल रहे जीवन सूत्रों और रहस्यों को जानने का प्रयास करना, बहुत ही कठिन काम है, वस्तुतः जीवन अपने रहस्यों को अपने में ही समेटे रखेगा वरना हर व्यक्ति आज आत्मज्ञानी होता।
अतः मनुष्य मात्र को जीवन रहस्यों को जानने के प्रयास करने से अधिक अपने जीवन को अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए। गर जीवन को सच्चे साधना की तरह जी पाए तो वस्तुतः आपके जीवन का असल उद्देश्य प्राप्त कर सकेंगे और मुमकिन है, उस जल की बून्द की तरह, जो नदी में मिलकर नदी बन गयी हमारी आत्मा जब शरीर का त्याग करेगा, यह पुनः परमात्मा में विलीन हो जाएगा।
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