संगीत इक दिव्य शक्ति

संगीत इक दिव्य शक्ति लेख के माध्यम से मैं संगीत और इसकी अलौकिक शक्तियों के बारे में जागरुकता लाने का प्रयास कर रहा हूँ, मुझे उम्मीद है इस लेख को पड़ने के बाद आपको संगीत को एक अलग नजरिये से देख पाएंगे।

चलिए शुरू करते हैं, प्राचीन काल से ही मनुष्य का संगीत के प्रति रुचि रहा है,जब हम कृष्ण के बारे में अध्ययन करते हैं तो पाते हैं, कृष्ण अपनी बांसुरी कि धुन से सभी गोपियों,पशु ,पक्षिओ और विभिन्न जीव जन्तुओ को आकर्षित कर लेते थें। सभी उनके बांसुरी की मधुर स्वर से मंत्र मुग्ध हो जाते थें।

गर हम वेदो की बात करे तो चार वेदो में से एक वेद “सामवेद” हैं।
वेद यानी ज्ञान
हज़ारो वर्षो में अबतक सिर्फ चार ही वेद लिखे गए है, और उनमे से एक हैं सामवेद।
वेद लिखा किसने ? जाहिर सी बात हैं, हमारे दिव्य ऋषि मुनिओ ने। जो ऋषि मुनि अपना जीवन पूजा पाठ में समर्पित कर देते थे, उनको कैसे पता चला संगीत के बारें में ? कैसे पता चला संगीत भी इक दिव्य शक्ति हैं, जिससे हम परमात्मा से जुड़ सकते हैं ? क्यों लिखा उन्होंने सामदेव ?

प्रश्न यह नहीं की प्राचीन ऋषि मुनिओ को संगीत का पता कैसे चला ?
क्यूंकि उनको तो पता चलना ही था, क्यूंकि उनकी आध्यात्मिक शक्तिया अद्वितीय थी।

उन्होंने सबकुछ ही ढूंढ निकाला था,समुद्र में जीवन का शुरुआत से लेकर, सूर्य का पृथ्वी से दूरी, ग्रह, नक्षत्र, योग , प्लास्टिक सर्जेरी, सबकुछ, सबकुछ ढूंढ निकाला।
सब उनकी ही देन हैं आधुनिक मानव को, पर दुर्भाया की बात यह हैं की जब अंग्रेज़ सरकार धोखे से भारत आयी और इसे अपने कब्ज़े में ले लिया तो इन्होने हमरा समस्त ज्ञान को रोककर अपनी अंग्रेजी थोप कर चले गए।

आज हालत यह है कि हर इंसान अपने बच्चे को अंग्रेजी मीडियम में शिक्षा के लिए भेजते है, अंग्रेजी में बात करे तो फक्र महसूस करते है, और अपनी पुरानी विरासत को भूलते चले गए।

वह हमें सांपो से खेलने वाले तुच्छ सपेरे और अंधविश्वाशी समझते थे। यकीन मानिये मैं इस लेख का सबसे महत्वपूर्ण भाग में पहुंच चूका हूँ, इसलिए जरा गौर फरमाईयेगा –

अंग्रेजो ने हमें सांपो से खेलने वाले तुच्छ सपेरे और अंधविश्वाशी समझकर हमारे सपेरों को सांपो से खेल दिखाने से रोकने के लिए बिल पास कर दिया कि ये सपेरे सांपो को गैर क़ानूनी तरीके से पकड़कर खेल दिखाते है, उनकी हत्या कर देते है, तो किसी भी जीव को ऐसे वश में करना गैर क़ानूनी है कहकर उन्हें रोक दिया। वक़्त आगे बढ़ता गया, आज कोई सोचता भी नहीं कि यह कैसा करिश्मा था, जो हमने सीख लिया था ?

संगीत इक दिव्य शक्ति

मेरा मतलब है, कोई भी जहरीला से जहरीला सांप हो, उसको मारे बगैर, उसको संगीत (बीन) के जरिये वश में कर लेते, उसको अपने पे हमला करना तो दूर वह हमारे संगीत पे नाचते थे और आसानी से एक टोकरी में बैठ जाते थे।

क्या यह किसी करिश्मे से कम था ? क्या था यह ज्ञान ? पर इसके बारें में आज कोई नहीं जानता। पशुओ की संरक्षण के नाम पे बनायीं कानून से अंग्रेजो ने पशुओ की रक्षा तो नहीं की, बल्कि हम जो-जो दवाइआ आज खातें उनमें से ज्यादातर सांपो के ही विष से बनायीं जाती है, मतलब वह खुद सांपो को मारते है दवाईओ के लिए, अपने फैयदे के लिए पर दुसरो को संरछण के नाम पे रोक दिए।

आज के समय में मैं इस्लाम धर्म के कई मौलविओ को भी देखता हूँ, जो यह कहते हैं की ” इस्लाम में मौसिकी हराम हैं “। चलिए कृष्ण की बात नहीं करते है की मौशिकी से वो कैसे समस्त जीवो को मंत्र मुग्ध देते थे, न ही सामवेद की बात करेंगे, क्यूंकि आप उसमें धर्म का एंगल लेके आ-जाओगे कि दूसरे धर्म सब काफिर है, उनको कुछ नहीं पता।

मैं ये भी नहीं कहूंगा की आप हमारी कहानिओ पर यकीन करो, बल्कि आप तो सोचते सब अन्धविश्वास है।
कृष्ण की कहानी भी आपको सच नहीं लगता, आप इनको मिथोलॉजिकल कहानिया समझते हो।
चलिए सब माना। पर क्या आप हमारे सपेरों की कहानिओ से रुबरु नहीं हुए ? इसका तो प्रमाण है हमारे पास, कि हमारे लोग मौसिकी (बीन बजाकर) से किसी भी विषैले से विषैले जीव को बिना छुए, बिना हिंसा किये वश में कर लेते थे। विषैला सांप प्रेम से ही उसके वश में आ जाता था।

गर मौसिकी एक विषैले प्राणी को हिंसा करने से रोक सके, वह प्राणी किसी भी धर्म का नहीं है न, कैसे वह उस मौसिकी में मंत्र मुग्ध हो जाता है ? उस प्राणी को किसी ने नहीं बताया क्या हराम है, क्या सही है, पर वह मौसिकी के जरिये खुद को उस परवर्तीगार से जोड़ पाया, तभी शांति से खुद को उस सपेरे भाई को समर्पित कर दिया।

संगीत एक ऐसा ज्ञान है जो सिर्फ इंसानो को ही नहीं, बल्कि दूसरे जीव जंतीओ को भी मंत्र-मुग्ध कर सकता है, क्या वो हराम हो सकता है ?
कभी सोचा है, बड़े-बड़े संगीतकारो को फनकार क्यों कहते है ? फन किसका होता है ? नाग सांप का। क्या रिश्ता है, संगीत का फन से ?
क्या इसका मतलब यह तो नहीं की वह फनकार भी एक जादूगर सा है जो अपने संगीत से सबको मंत्र-मुग्ध कर सकता है, उनको आत्म सुख सा महसूस करा सकता है।

तानसेन के बारे में बड़ी कहानिया प्रसिद्ध है, वह राग दीपक गाकर दीप जला देते थे तो कभी राग मेघ-मल्हार गाकर बदलो को आकर्षित कर लेते थे।

नुसरत फ़तेह अली खान के बारे में कहा जाता है, जब वह संगीत में आलाप लेते थे तो मानो उस अदृश्य शक्ति से ऐसे जुड़ जाते थे कि अनेको बार उनका पिशाब तक स्टेज के ऊपर निकल जाता। इतना बड़ा फनकार पर स्टेज पे पिशाब, पर उनको कभी उससे शर्मिंदगी नहीं होती थी, क्यूंकि उनको तो वो कनेक्शन अच्छा लगता जो वह उस अल्ला-ताला से जुड़कर महसूस करते थे, इसलिए कभी भी उन्होंने पिशाब पे ध्यान नहीं दिया बल्कि अपनी कनेक्शन को चुना।

जिनको ऐसा ज्ञान प्राप्त हो, जिनको परवर्तीगार (आपका अल्ल्ह ताला ) ने ऐसा तौफा दिया हुआ है, आप उनको हराम कहते हो ?
यह आपको तय करना है, जो ज्ञान आपको बताया गया है, सिखाया गया है, वह कितना सही है। तय आपको करना है, कि आप अपनी ज़िन्दगी किस दिशा में लेके जाना चाहते ? क्या जो बाते आपको सिखाई गयी क्या सब सही है ? गर नहीं तो अगे कैसे बढ़ना है ? आप पूछिए अपने मौलविओ से सवाल और देखिये जवाब क्या मिलता है ? क्या आप संतुस्ट है, उनके जवाब से ? गर नहीं तो तय आपको करनी है अपनी जिंदगी।

संगीत इक ऐसी दिव्य शक्ति है, जिससे आप अध्यात्म से जुड़ सकते है, जिसके बारे में आपको पता ही नहीं।
जो लोग मैडिटेशन करते है, उन लोगो ने पूछिए, गर कभी महसूस नहीं किया की जब वो म्यूजिक के साथ मैडिटेशन करते है, तो उनको अपने आप से कनेक्ट होने में एक डिवाइन सा महसूस होता है या नहीं ? और गर होती है तो म्यूजिक के साथ या म्यूजिक के बगैर, कैसे उनको कनेक्ट होने में असानी लगती है ?

तो, संगीत क्या है ?
पर विडम्बना देखिये,आज के समय में संगीत को फिल्म-इंडस्ट्री ने बहुत ही गन्दगी कर दी है, अश्लील गाने जैसे ” भीगे होठ तेरे, प्यासा दिल मेरा; पल्लू के नीचे छुपाके रक्खा है उठा दू तो हंगामा हो।
” कैसे-कैसे अश्लील गाने बनाये जाते है, सिर्फ सेक्स दिखाया जाता है, युवाओं को गुमराह करके अधिक से अधिक पैसे कमाना चाहते है, मानो पैसो के अलावा इनके जिंदगी में और कुछ भी नहीं है।

जब भी गाने हिट हुए तो फिल्म हिट हो जाता है। अभिनेता और अभिनेत्री तो सिर्फ अभिनय करते है, गाना-गाने का, पर फनकार (संगीतकार ) पीछे से अपने फन से सबको उस अभिनेता या अभिनेत्री से जोड़ देता है। दिलो से तार ऐसा जुड़ता, लोग इन अभिनेताओं को भी एक तरह का भगवान मान लेते।
कितने, लोग मिलते है इनसे जो ये कहते है, हमने भगवान को नहीं देखा पर आपको देखकर भगवान पे यकीन आ गया।

ये कैसा चमत्कार था जो लोगो को इन कलाकारों से ऐसे जोड़ (कनेक्ट) देते ? यह है संगीत। पर संगीत के लेवल आज के फिल्म-इंडस्ट्री ने थर्ड-क्लास बना दिया है, इसका विरोध होना चाहिए और हमें इसकी आद्यात्मिक पहलुओं से जुड़ने की कोशिस करनी चाहिए।

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