हिंदी मेरी पहचान शीर्षक के माध्यम से मैं हिंदी भाषा, हमारी संस्कृति और फिर इसके लुप्त होने की कहानिया बताऊंगा।
कहा जाता है संस्कृत दुनिआ का सबसे पहली भाषा है और इसी से बाकी समस्त भाषाओ का उदय हुआ है। हिंदुस्तान जिसने दुनिआ को भाषा का ज्ञान दिया, वेद दिए, भगवत गीता ज्ञान दिए, आज उसी की अपनी भाषा हिंदी और संस्कृत पे लोग गर्व महसूस नहीं करते बल्कि गर कोई अंगेज़ी में बात कर पाए तो लोग उनका सम्मान करते हैं।
मुझे बहुत दुःख होता हैं जब मैं देखता हूँ हमारे बड़े-बड़े कार्यालयों, उद्योगों, दफ्तरों के वरिष्ठ व्यक्ति ये कहते है कि मेरी हिंदी कमजोर हैं इसलिए मैं इंग्लिश में बात करूँगा/करुँगी।
दक्षिण भारत के अनेको नेताओ या वरिष्ठ लोगो को भी आप अक्सर ऐसा कहते हुए देख सकते हैं। क्यों ? क्यूंकि, सबको लगता है इंलिश में बात करना सम्मान की बात होती है। ये कैसा विरोधाभाष हैं कि हम अपने खुद की भाषा को निंदनीय समझते है, और एक विदेशी भाषा को सम्मान का साधन समझते हैं। यह अत्यधिक शर्मनाक बात हैं, पर इक कड़वी सत्य हैं।
संभवतः यह रातो-रात तो नहीं हुई होगी, अपितु किसी ने कभी यह सोची होगी और उसी का परिणाम है आज तमाम शिक्षा प्रणाली से लेकर कार्यालयों में अंग्रेजी की आवशयकता होती है, विवशतः हिन्दुस्तनिओ को यह भाषा सीखनी ही पड़ती है।
प्रस्न यह नहीं है कि क्या अंग्रेजी सीखना या अंग्रेजी में बात करना गलत है ? कोई किसी भी भाषा में बात करे इससे किसी को क्या फर्क पड़ता है।
लेकिन जब समाज किसी खास भाषा को सम्मान दे और दूसरी को गवार समझा जाये, यह कदाचित सोचने वाली बात तो हैं।
135 करोड़ जनसख्याँ वाली भारत के करीब हर माँ बाप जिनके पास जरा सी भी समृद्धि है, चाहता है कि उनके बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल या किसी इंटरनेशनल स्कूल से शिक्षा प्राप्त करे।
विडम्बना यह भी है कि तक़रीबन हर माँ बाप चाहते है कि उनके बच्चे इंलिश मीडियम स्कूल में पड़े, पर इंलिश सीखेंगे कैसे यह बहुत कम लोग ही जानते है। मैं उन तमाम माता पिताओ से पूछना चाहता हूँ कि आपके बच्चे आपका मातृ भाषा तो कोई स्कूल गए बगैर ही सीख जाता है, कैसे ? क्यूंकि आपको भाषा का ज्ञान है और अपने घर पे ही उसे सिखा दिया है। परन्तु आपको अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है इसलिए आप सोचते हो की आपका संतान इंग्लिश मीडियम स्कूल जाकर ही इंलिश सीख सकता है, और इंलिश सिखने के लिए ग्रामर/व्याकरण बहुत महत्वपूर्ण है।
गर यह बात आपके भी जीवन की सच्चाई है तो मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि जब आपने, अपने संतान को अपना मातृ भाषा सिखाया, तब क्या ग्रामर की किताबे पढ़ाकर अपना भाषा सिखाया या फिर आपने एक-एक वाक्य सिखाया ?
एक-एक वाक्य सिखाये। हैं न ?
तो जब आपका भाषा व्याकरण की किताबो के बगैर सीखा जा सकता है तो फिर इंग्लिश क्यों नहीं ? क्या इंलिश एक भाषा नहीं है ? इंलिश भी तो एक भाषा है न ? अंग्रेज़ो और अमेरिकन्स का।
अब जब आप समझ चुके हो कि इंलिश भी एक भाषा है तो इसे कैसे सीख सकते है? जाहिर सी बात है, हम इसे उनसे सीख सकते है जिन्हे इंलिश भाषा का ज्ञान है।
यहाँ मेरा मतलब यह बिलकुल नहीं कि इंलिश भाषा को जानने वाला कोई पूरी की पूरी ऑक्सफ़ोर्ड की डिक्शनरी/शब्दकोष को याद कर ले।
बिलकुल भी नहीं। क्या हम हिंदी या अपने भाषा की सभी शब्दों का अर्थ जानते है ? नहीं।
तो फिर हम कैसे अपनी भाषा में बात करते है ? कदाचित, हमें उतना तो पता होता ही है जिससे हम किसी दूसरे के साथ संवाद कर सके।
कहने का मतलब यह है कि गर हमे इंलिश उतनी ही आये जितनी के द्वारा हम किसी दूसरे इंलिश भाषी के व्यक्ति से संवाद कर सके।
और उसके लिए आपको समस्त शब्दकोष को कंठस्थ करने की भी कोई जरुरी नहीं।
गर आप अभी भी यदि मेरे बातो से सहमत न हो तो किसी अमीर के बच्चे को देख ले, उनके छोटे-छोटे बच्चे इंलिश बिलकुल साफ-साफ कह पाते है, कैसे ? क्यूंकि उनके घरो में उनके माता पिता इंलिश में बात करते है, जिससे बच्चा भी वही भाषा सीख जाता है।
अब सवाल यह है कि कैसे हम हिंदुस्तानी अपनी भाषा से दूर होते चले गए और इंलिश भाषा में अपना सम्मान ढूंढने लगे ? इसे समझने के लिए मैं आपको इतिहास में लेकर चलता हूँ -
2 फ़रवरी सन 1835 के दिन ब्रिटेन के संसद में लॉर्ड मकौले ने एक भाषण दिए, उन्होंने कहा –
“I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage and therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that is foreign and English is good and greater than their own, they will loose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation.
इसका मतलब है, उन्होंने हिंदुस्तान के हरेक कोने में घूमा और उन्हें यहाँ एक भी भिखारी या चोर नज़र नहीं आया। अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से सुसज्जित इतनी खूबसूरत देश है जिन्हे समस्त ब्रिटिश साम्राज्य कभी नहीं जीत सकता, लेकिन यदि हम इसकी भाषा बदल कर इंग्लिश कर दे, तो लोगो में इंग्लिश के प्रति सम्मान और हिंदी या दूसरे भाषाओ के प्रति घृणा पैदा होगा और तभी हम उस देश को पूर्ण रूप से जीत सकेंगे।
सोचकर देखिये, कैसे एक अकेले व्यक्ति ने आज से करीब 200 वर्ष पूर्व यह देख लिया था कि कैसे इस देश को पूरी तरह से जीता जा सकता है। कैसे उन्होंने एक दिन अपने उस सोच का बीज बोया जो वक़्त के साथ चलकर एक बड़ा वृक्ष बन गया।
देश आज़ाद होकर 75 साल हो गए, अभी-अभी तो हमने आजादी की अमृत महोत्सव भी मनाया हैं। पर क्या हम मकौले के उस सोच से आज़ाद हो पाए ? नहीं।
हमें पूर्ण आज़ाद होना पड़ेगा, हमारी सांस्कृतिक आज़ादी अत्यधिक आवश्यक है। जैसे मकौले के बोये बीज रातो-रात वृक्ष नहीं बनी, वैसे ही हमें इंग्लिश को सिर्फ एक भाषा से ज्यादा कुछ नहीं, इस सोच का भी एक बीज बोनी होगी जो वक़्त के साथ-साथ आगे चलकर एक वृक्ष बनेगी। हमें हिंदुस्तान को अपने भाषा के प्रति जाग्रत करनी होगी कि अपनी राष्ट्र भाषा पे गर्व करे, अपनी मातृ भाषा पे गर्व करे, इंलिश सीखे पर इसे सम्मान का साधन न समझे।
जिस दिन हिंदी हमरी पहचान बनेगी, उस दिन हिंदुस्तान पूर्ण आज़ाद होगा। 135 करोड़ भारतीय अपने देश, भाषा, संस्कृति इत्यादि पे गर्व करेगा, उसी दिन हम पूर्ण स्वतंत्र होंगे।
जय हिन्द।
Pic : Wikipedia.
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